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दीपावली पर अंधविश्वास की भेंट चढ़ते उल्लू, इस मिथकीय धारणा के चलते दी जाती है बलि

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लखीमपुर-खीरी।जहां हम सब दिवाली के त्योहार पर हर्षित होते हैं, दिये जलाते हैं और आनंद मनाते हैं, वहीं उल्लू जैसे पक्षी शोक मनाते हैं। दीपावली आते ही प्रकृति के इस खूबसूरत परिंदे पर हमारे समाज में सदियों से फैले अंधविश्वासों का संकट मंडराने लगता है। दरअसल, हमारे समाज में उल्लू के बारे में ये मिथकीय धारणा प्रचलित है कि यदि दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है। कई लोग इस पावन पर्व पर अपने स्वार्थ के लिए उल्लुओं की बलि देते हैं, जिसके चलते हर साल सैकड़ों उल्लुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास के मकड़जाल में कैद इंसान विवेकहीनता वश इस पक्षी का दुश्मन बन बैठा है।
तांत्रिक साधना के लिए बनी किताबों में उलूक तंत्र का जिक्र मिलता है
दीवाली आती है और उल्लू की शामत आ जाती है. रात-रात भर लोग उनकी तलाश में जंगल से लेकर उन ठिकानों में घूमते हैं, जहां उनके होने का अंदेशा होता है अवैध पक्षी बाजार में दीवाली से महीने भर पहले ही उल्लू की डिमांड कुछ जरूरत से ज्यादा ही बढ़ने लगती है इस काले बाजार में उनकी कीमत 10 रुपए से लेकर 50 हजार तक चली जाती है आखिर क्यों दीवाली से पहले उल्लू की डिमांड बढ़ जाती है दीवाली की रात अमावस की रात होती है इस रात बड़े पैमाने पर उल्लू की बलि देने की भी बात कही जाती है।
क्यों दीवाली पर हजारों में बिकते हैं उल्लू, त्योहार की रात दी जाती है बलि!
कुछ हिंदू मान्यताएं कहती हैं कि लक्ष्मी उल्लू की सवारी करती हैं, वहीं कहीं-कहीं इसका भी जिक्र मिलता है कि उलूकराज लक्ष्मी के सिर्फ साथ चलते हैं, सवारी तो वो हाथी की करती हैं बहरहाल, मान्यताएं चाहे जितनी अलग बातें कहें, दीवाली से उल्लुओं का गहरा ताल्लुक जुड़ गया है‌ माना जाता है कि दीवाली के रोज उल्लू की बलि देने से लक्ष्मीजी हमेशा के लिए घर में बस जाती हैं।
उल्लू को लक्ष्मी की बहन अलक्ष्मी क्यों मानते!
बड़ी-बड़ी आंखों वाला निरीह सा ये पक्षी हिंदू विश्वासों से सीधा जुड़ा हुआ है तो इसकी बड़ी वजह उसकी विशेषताएं हैं चूंकि ये निशाचर है, एकांतप्रिय है और दिनभर कानों को चुभने वाली आवाज निकालता है इसलिए इसे अलक्ष्मी भी माना जाता है यानी लक्ष्मी की बड़ी बहन, जो दुर्भाग्य की देवी हैं और उन्हीं के साथ जाती हैं जिसके पूर्वजन्मों का हिसाब चुकाया जाना बाकी हो एक मान्यता है कि लक्ष्मी का जन्म अमृत और उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी का जन्म विष से हुआ था।
बंगाली घरों में उल्लू को नहीं उड़ाते!
दीवाली के साथ उल्लुओं के संबंध पर भी विभिन्न मान्यताएं हैं पुराणों में इसका जिक्र मिलता है कि श्री लक्ष्मी विशालकाय सफेद उल्लू पर विराजती हैं यही वजह है कि किसी भी बंगाली घर में जाएं, वहां घर आए उल्लू को कभी भी उड़ाया नहीं जाता चाहे वो कितनी ही तीखी आवाज निकालता रहे खासकर सफेद उल्लू को वहां खास मेहमान की तरह देखा जाता है, जिसका लक्ष्मी जी से सीधा ताल्लुक है।
उल्लू को पकड़ने व बेचने पर सजा का प्रावधान!
हालांकि भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू संरक्षित पक्षियों के तहत आता है और उसे पकड़ने-बेचने पर तीन साल या उससे ज्यादा की सजा का नियम है लेकिन दिवाली पर इस प्रावधान की जबर्दस्त अनदेखी होती है।
आंखों में सम्मोहित करने की ताकत!
माना जाता है कि उसकी आंखों में सम्मोहित करने की ताकत होती है, लिहाजा उल्लू की आंखें ऐसी जगह रखते हैं जहां मिलना-मिलाना होता हो पैर तिजोरी में रखा जाता है चोंच का इस्तेमाल दुश्मनों को हराने के लिए होता है वशीकरण, मारण जैसी कई तांत्रिक क्रियाओं के लिए उल्लुओं का इस्तेमाल होता है।


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