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यूपी में वरिष्ठ-कनिष्ठ का कोई मतलब ही नहीं बचा, यूपी में डीजीपी की नियुक्ति पर पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने उठाया सवाल

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उप्र पुलिस के वरिष्ठतम लोग, जो वर्तमान व्यवस्था में महत्वपूर्ण पदों से वंचित रखे गये, वो इन अनैच्छिक परिस्थितियों में ‘ऐच्छिक सेवानिवृत्ति’ लेने पर मजबूर हैं। इससे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का मनोबल टूटता है, जिसका ख़ामियाज़ा प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था और जनता को भुगतना पड़ता है।
भाजपा सरकार में जब वरिष्ठ-कनिष्ठ का कोई मतलब ही नहीं बचा है तो ‘वरिष्ठता क्रम की सूची’ बनाने का क्या मतलब। वरिष्ठता में 1-2 के फेरबदल को तो कार्य के स्वरूप के आधार या किसी अन्य पैमाने पर उचित ठहराया भी जा सकता है लेकिन 10-12 के अंतर को नहीं। सामान्य रूप से किसी अधिकारी को किसी पद पर चुनने का आधार व्यक्तिगत पंसद, विचारधारा या सत्ता का अंदरूनी झगड़ा नहीं होना चाहिए बल्कि उस पद विशेष के लिए, अधिकारी की पदानुक्रमता के साथ-साथ योग्यता और अनुभव का समेकित संतुलित आधार होना चाहिए।
भाजपा सरकार अधिकारियों का मनोबल गिरा कर कुछ भी हासिल नहीं कर सकती है। हाल की कुछ घटनाओं में ये देखा गया है कि कुछ अधिकारियों को चिन्हित करके, उनके विभाग के अदंर और सोशल मीडिया के स्तर पर बाहर से, उनको या उनके परिवारों को प्रताड़ित-अपमानित किया गया है। भाजपाइयों द्वारा चलाया गया ये चलन बंद होना चाहिए।

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